Friday, May 12, 2017

ट्रैन


निश्चित नहीं है होना 
होने का अर्थ ही है - एक दिन नहीं होना 
लेकिन तुम बाज़ नहीं आते
अपनी जीने की आदत से 

शताब्दियों से इच्छा रही है तुम्हारी
यहाँ बस जाने की
यहीं इसी जगह 
इस टेम्परेरी कम्पार्टमेंट में 

तुम डिब्बों में घर बसाते हो
मुझे घर भी परमानेंट नहीं लगते

रोटी, दाल, चावल
चटनी, अचार, पापड़
इन सब पर भरोसा है तुम्हे

मैं अपनी भूख के सहारे जिंदा हूँ

देह में कीड़े नहीं पड़ेंगे
नमक पर इतना यकीन ठीक नहीं

तुम्हारे पास शहर पहुंचने की गारंटी है
मैं अगले स्टेशन के लिए भी ना-उम्मीद हूँ

तुम अपने ऊपर
सनातन लादकर चल रहे हो
दहेज़ में मिला चांदी का गिलास
छोटी बाईसा का बाजूबंद
और होकम के कमर का कंदोरा
ये सब एसेट हैं तुम्हारी 
मैं गमछे का बोझ सह नहीं पा रहा हूँ

ट्रैन की खिड़की से बाहर
सारी स्मृतियां 
अंधेरे के उस पार
खेतों में जलती हैं 
फसलों की तरह

मुझे जूतों के चोरी होने का डर नहीं लगता
इसलिए नंगे पैर हो जाना चाहता हूँ

सुनो, 
एक बीज मंत्र है
सब के लिए
हम शिव को ढूंढने
नहीं जाएंगे कहीं

आत्मा को बुहारकर
पतंग बनाई जा सकती है
या कोई परिंदा

हालांकि टिकट तुम्हारी जेब में है
फिर भी एस-वन की 11 नम्बर सीट तुम्हारी नहीं
इसलिए तुम किसी भी 
अँधेरे या अंजान प्लेटफॉर्म पर उतर सकते हो

नींद एक धोखेबाज सुख है
तुम्हारी दूरी मुझे जगा देती है

समुद्री सतह से एक हज़ार मीटर ऊपर
इस अँधेरे में
मेरा हासिल यही है
जिस वक़्त इस अंधेर सुरंग से ट्रैन
गुजर रही है
ठीक उसी वक़्त
वहां समंदर के किनारे
तुम्हारे बाल हवा में उलझ रहे होंगे
तुम्हारे हाथों पर 
खारे पानी की परतें जम गई होगी
कुछ नमक
कुछ रेत के साथ 
तुम चांदीपुर से लौट आई होगी। 

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